वो सद-रश्क जन्नत वो गुलज़ार देहली
वो देहली जो फ़िरदौसे–हिंदोस्ताँ है
वो मजमुआ-ए-हुस्नो अनवार देहली
वो देहली के जिसकी ज़मीं आस्माँ है
वही जिसने देखे हैं लाखों ज़माने
सुने हैं बहुत इन्क़लाबी फ़साने
जहाँ दफ़्न हैं सैकड़ों ताज वाले
दो–रोज़ा हुकूमत के मैराज़ वाले
वहाँ शम्मा जलती है धीमी–सी लौ की
जहाँ जल्वारेज़ी है तहजीबे–नौ की
वहीं की ये दिल दोज़ रूदाद सुनिये
जहाने–अलम–ज़िक्रे बेदाद सुनिये
शफ़क से पहर के ठिकाने लगी थी
सियाही फ़िज़ाओं पे छाने लगी थी
फ़लक पर सितारे चमकने लगे थे
मुहब्बत के मारे बहकने लगे थे
वो बाज़ार की ख़ुशनुमा जगमगाहट
वो गोश–आश्ना चलने फिरने की आहट
वो हर तरफ़ बिजलियों की बहारें
दुकानात की थी दुरबिया कतारें
ये मंज़र भी था किस कदर कैफ़–सामाँ
ख़ुदा की ख़ुदाई थी जन्नत बदामाँ
सड़क पर कोई रह–रू–ए कुए जाना
चला जा रहा था ख़रामा ख़रामा
इधर राह पर नौजवाँ जा रहा था
उधर कोई मोटर चला आ रहा था
ये गाड़ी न थी जो चली आ रही थी
हक़ीक़त में जन्नत खिंची आ रही थी
कोई क्या बताये कि जन्नत में क्या था
वही था जो अब तक न देखा हुआ था
वो हुस्ने–मुक़म्मिल वो बर्के–मुजस्सिम
वो जिसके तसव्वुर से भी दूर हो ग़म
वो इक पैकरे–सादगी अल्लाह–अल्लाह
वो नाज़ुक लबों पर हँसी अल्लाह–अल्लाह
सरापा मुहब्बत सरापा जवानी
सितम उसपे साड़ी का रंग आस्मानी
वो रह रह के आँचल उठाने का आलम
वो हँस–हँस के मोटर चलाने का आलम
ये आलम बज़ाहिर फ़रेबे नज़र था
कि बस एक लम्हे में रंगे–दिगर था
न बश्शाश चेहरा न लब पे तबस्सुम
सुकून आश्ना था अदाये तकल्लुम
गिरा बारियाँ दिल को शर्मा गई थीं
निगाहों पे तारीकियाँ छा गई थीं
हुये सनफे नाज़ुक के होशो ख़िरद गुम
ज़ुबाँ ने पुकारा ‘तसादुम–तसादुम‘
ये मंज़र भी था किस कदर वहशत अफ़्जा
कि मोटर सरे राह ठहरा हुआ था
दिगर गूँ थी हालत तमाशाईयों की
ख़बर थी उन्हें दिल की गहराईयों की
इधर नौजवाँ खूँ बदामा पड़ा था
उधर एक मासूम क़ातिल खड़ा था
इधर रूह अज़्मे–सफ़र कर चुकी थी
उधर दिल पे वहशत असर कर चुकी थी
इधर मौत ख़ुद ज़िन्दगी अस्ल में थी
उधर ज़िन्दगी मौत की शक़्ल में थी
गरज़ खुल गई असलियत हादसे की
हुई मरने वाले की जामा तलाशी
पसे जेब क़ातिल की तस्वीर निकली
इलावा अज़ीं एक तहरीर निकली
तसल्ली हुई जान में जान आई
जो पर्चे पे लिखी इबारत ये पाई
“जफ़ाए–मुसल्सल से घबरा गया था
मैं ख़ुद आके मोटर से टकरा गया था“
टिप्पणियाँ:
- मेरे दिवंगत पिताजी मुझे बचपन में बताते थे की यह नज़्म चांदनी चौक दिल्ली में बहुत साल पहले हुई एक असली दुर्घटना पर आधारित है
- तस्वीर हिंदुस्तान टाइम्स के सौजन्य से
- विवेक प्रकाश सिंह का विशेष आभार




