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Posts Tagged ‘Shakeel Badayuni’

वो सद-रश्क जन्नत वो गुलज़ार देहली

वो देहली जो फ़िरदौसेहिंदोस्ताँ है





वो मजमुआ-ए-हुस्नो अनवार देहली

वो देहली के जिसकी ज़मीं आस्माँ है





वही जिसने देखे हैं लाखों ज़माने

सुने हैं बहुत इन्क़लाबी फ़साने





जहाँ दफ़्न हैं सैकड़ों ताज वाले

दोरोज़ा हुकूमत के मैराज़ वाले





वहाँ शम्मा जलती है धीमीसी लौ की

जहाँ जल्वारेज़ी है तहजीबेनौ की





वहीं की ये दिल दोज़ रूदाद सुनिये

जहानेअलमज़िक्रे बेदाद सुनिये





शफ़क से पहर के ठिकाने लगी थी

सियाही फ़िज़ाओं पे छाने लगी थी





फ़लक पर सितारे चमकने लगे थे

मुहब्बत के मारे बहकने लगे थे





वो बाज़ार की ख़ुशनुमा जगमगाहट

वो गोशआश्ना चलने फिरने की आहट





वो हर तरफ़ बिजलियों की बहारें

दुकानात की थी दुरबिया कतारें





ये मंज़र भी था किस कदर कैफ़सामाँ

ख़ुदा की ख़ुदाई थी जन्नत बदामाँ





सड़क पर कोई रहरू कुए जाना

चला जा रहा था ख़रामा ख़रामा





इधर राह पर नौजवाँ जा रहा था

उधर कोई मोटर चला रहा था





ये गाड़ी थी जो चली रही थी

हक़ीक़त में जन्नत खिंची रही थी





कोई क्या बताये कि जन्नत में क्या था

वही था जो अब तक देखा हुआ था





वो हुस्नेमुक़म्मिल वो बर्केमुजस्सिम

वो जिसके तसव्वुर से भी दूर हो ग़म





वो इक पैकरेसादगी अल्लाहअल्लाह

वो नाज़ुक लबों पर हँसी अल्लाहअल्लाह





सरापा मुहब्बत सरापा जवानी

सितम उसपे साड़ी का रंग आस्मानी





वो रह रह के आँचल उठाने का आलम

वो हँसहँस के मोटर चलाने का आलम





ये आलम बज़ाहिर फ़रेबे नज़र था

कि बस एक लम्हे में रंगेदिगर था





बश्शाश चेहरा लब पे तबस्सुम

सुकून आश्ना था अदाये तकल्लुम





गिरा बारियाँ दिल को शर्मा गई थीं

निगाहों पे तारीकियाँ छा गई थीं





हुये सनफे नाज़ुक के होशो ख़िरद गुम

ज़ुबाँ ने पुकारातसादुमतसादुम





ये मंज़र भी था किस कदर वहशत अफ़्जा

कि मोटर सरे राह ठहरा हुआ था





दिगर गूँ थी हालत तमाशाईयों की

ख़बर थी उन्हें दिल की गहराईयों की





इधर नौजवाँ खूँ बदामा पड़ा था

उधर एक मासूम क़ातिल खड़ा था





इधर रूह अज़्मेसफ़र कर चुकी थी

उधर दिल पे वहशत असर कर चुकी थी





इधर मौत ख़ुद ज़िन्दगी अस्ल में थी

उधर ज़िन्दगी मौत की शक़्ल में थी





गरज़ खुल गई असलियत हादसे की

हुई मरने वाले की जामा तलाशी





पसे जेब क़ातिल की तस्वीर निकली

इलावा अज़ीं एक तहरीर निकली





तसल्ली हुई जान में जान आई

जो पर्चे पे लिखी इबारत ये पाई





जफ़ाएमुसल्सल से घबरा गया था

मैं ख़ुद आके मोटर से टकरा गया था


टिप्पणियाँ:
  1. मेरे दिवंगत पिताजी मुझे बचपन में बताते थे की यह नज़्म चांदनी चौक दिल्ली में बहुत साल पहले हुई एक असली दुर्घटना पर आधारित है
  2. तस्वीर हिंदुस्तान टाइम्स के सौजन्य से
  3. विवेक प्रकाश सिंह का विशेष आभार

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